एक हजार साल में एक बार, कुछ महान लोग पृथ्वी पर चलते हैं और हमेशा के लिए अपनी छाप छोड़ देते हैं। वे मानवता पर ऐसा प्रभाव डालते हैं जो मानव मानकों द्वारा मापना लगभग असम्भव है।
महात्मा गांधी उनमें से एक थे। उसने किसी भी परमाणु हथियार, सेना, या द्वेष का उपयोग किए बिना भारत को एक स्वतंत्र देश बना दिया।
उस व्यक्ति से बहुत कुछ सीखना है जिसने सरल जीवन और उच्च सोच का सही मूल्य दिखाया है।
बहुत से प्रसंगों के कारण वे विवादों में रहे लेकिन यहाँ इस लेख में केवल उनकी positive side ही प्रस्तुत की गई है.
यहाँ पर सबसे प्रसिद्ध Mahatma Gandhi Quotes in Hindi दिए गये हैं जो आपको महानता के लिए प्रेरित करते हैं:
Mahatma Gandhi Quotes in Hindi
जो काम मेरे सामने हैं, उसे करके मैं संतुष्ट हूँ। क्यों और किसलिए की फिक्र मैं नहीं करता। विवेक हमें इस बात को समझने में सहायक होता है कि जिन चीज़ों की थाह हमें नहीं है, उनमें अपनी टांग न घुसेड़ें।
मुझे भरोसा करने में विश्वास है। भरोसा करने से भरोसा मिलता है। संदेह दुर्गंधमय है और इससे सिर्फ सड़न पैदा होती है। जिसने भरोसा किया है, वह दुनिया में आज तक हारा नहीं है।
मेरी अंतरात्मा की आवाज मुझसे कहती है. “तुम्हें सारी दुनिया के विरोध में खड़ा होना है, भले ही तुम अकेले खड़े हो। दुनिया तुम्हें आग्नेय दृष्टि से देखे, पर तुम्हें उनसे आंख मिलाकर खड़े रहना है। डरो मत। अपनी अंतरात्मा की आवाज का भरोसा करो।
यह आवाज कहती है: “मित्रों का, पत्नी का और सभी का त्याग कर दो किंतु जिसके लिए तुम जिए हो और जिसके लिए तुम्हें मरना है, उसके प्रति सच्चे बने रहो।
पराजय मुझे हतोत्साहित नहीं कर सकती । यह मुझे केवल सुधार सकती है.. में जानता हूं कि ईश्वर मेरा मार्गदर्शन करेगा। सत्य मानवीय बुद्धिमत्ता से श्रेष्ठतर है।
मैंने कभी अपनी आशावादिता का त्याग नहीं किया है। प्रत्यक्ष: घोर विपत्ति के कालों में भी मेरे अंदर आशा की प्रखर ज्योति जलती रही है। में स्वयं आशा को नहीं मार सकता।
अहिंसा पर गाँधी जी के विचार | Mahatma Gandhi Quotes on Non-Violence
गाँधी जी अहिंसा के कट्टर समर्थक रहे हैं. देखिये अहिंसा पर उनके कुछ विचार.
आम तौर पर लोग सत्य का स्थूल अर्थ सत्यवादिता ही समझते हैं। लेकिन सत्य वाणी में सत्य के पालन का पूरा समावेश नहीं होता; इसी तरह साधारणतया लोग अहिंसा का स्थूल अर्थ यही करते हैं कि दूसरे जीव को मारना नहीं; किन्तु केवल प्राण न लेने से अहिंसा की साधना पूरी नहीं होती।
अहिंसा केवल आचरण का स्थूल नियम नहीं, बल्कि मन की वृत्ति है जिस वृत्ति में कहीं भी द्वेष की गंध तक नहीं रहती, वह अहिंसा है।
इस प्रकार की अहिंसा सत्य के समान ही व्यापक होती है। ऐसी अहिंसा की सिद्धि के बिना सत्य की सिद्धि संभव नहीं। अतएव दूसरी दृष्टि से देखें, तो सत्य अहिंसा की पराकाष्ठा ही है। पूर्ण सत्य और पूर्ण अहिंसा में भेद नहीं, फिर भी समझने की सुविधा के लिए सत्य को सत्य और अहिंसा को साधन माना है।
ये सत्य और अहिंसा सिक्के के दो पहलुओं की तरह एक ही सनातन वस्तु की दो साधुओं के समान हैं।
अनेक धर्मों में ईश्वर को जो प्रेम स्वरूप कहा गया है, उस प्रेम और इस अहिंसा में कोई अन्तर नहीं है।
प्रेम के शुद्ध, व्यापक स्वरूप का नाम अहिंसा है। जिस प्रेम में राग या मोह की गंध आती है, उसमें अहिंसा नहीं होती। जहाँ राग और मोह होते हैं, वहाँ द्वेष का बीज भी रहता ही है। प्राय: प्रेम में राग-द्वेष पाये जाते हैं, इसी लिए तत्ववेत्ताओं ने प्रेम शब्द का उपयोग न कर के अहिंसा शब्द की योजना की है और उसे परम धर्म कहा है।
ब्रह्मचर्य पर महात्मा गाँधी के विचार
अपनी आत्मकथा (1925) में भी गाँधीजी ने ‘ब्रह्मचर्य’ पर दो अध्याय लिखे हैं। जिनके कारण वह विवादों में भी घिरे रहे.
हालाँकि हम इस लेख में उनके सकारत्मक पहलू को ही लिख रहे हैं.
जिस प्रकार अहिंसा के बिना सत्य की सिद्धि संभव नहीं, उसी प्रकार ब्रह्मचर्य के बिना सत्य और अहिंसा दोनों की सिद्धि असम्भव है।
ब्रह्मचर्य का अर्थ है, ब्रह्म अथवा परमेश्वर के मार्ग पर चलना; अर्थात् मन और इन्द्रियों को परमेश्वर के मार्ग में लगाये रखना।
रागादि विकारों के बिना ब्रह्मचर्य अर्थात् इन्द्रिय परायणता संभव नहीं। विकारी मनुष्य सत्य अथवा अहिंसा का पूर्ण पालन कर ही नहीं सकता; तात्पर्य यह कि वह कभी आध्यात्मिक पूर्णता प्राप्त नहीं कर सकता।
ब्रह्मचर्य का अर्थ केवल वीर्य-रक्षा अथवा काम-जय ही नहीं है, बल्कि उसके लिए सभी इन्द्रियों का संयम आवश्यक हैं।
लेकिन लोक व्यवहार में ब्रह्मचर्य का अर्थ काम-जय ही किया जाता है। इसका कारण यह है कि मनुष्य को काम-जय ही अधिक-से-अधिक कठिन इन्द्रिय-जय मालूम होती है। लेकिन इस अर्थ को अधूरा समझना चाहिए।
वस्तु: जीवन को सुखपूर्वक बिताने के लिए दूसरी इन्द्रियों का थोड़ा-बहुत भोग आवश्यक हो जाता है, किन्तु काम-जय से अथवा जननेन्द्रिय के सम्पूर्ण संयम से जीवन निर्वाह अशक्य नहीं बनता, उल्टे वह अधिक अच्छा और तेजस्वी बन जाता है।
महात्मा गाँधी के अभय पर सुविचार
अभय का अर्थ होता है निर्भयता.
इसी विषय पर उनके कुछ विचार यहाँ दिए गये हैं.
जो मनुष्य अपने मन के विचारों के अलावा दूसरी आपत्तियों से डरता है, वह अहिंसा का पालन नहीं कर सकता। इसी कारण देवी पत्तियों में अभय पहला प्राप्त करने योग्य गुण है।
मौत, परेशानियाँ, धननाश, मारकाट, जुल्म और अत्याचार, मानहानि, लोकनिन्दा, काल्पनिक भ्रम, पारिवारिक क्लेश अथवा परिवार के लोगों का दुःख—इन और ऐसे अनेक कारणों से साधारणतया मनुष्य बराबर डरता ही रहता है।
डरने वाला मनुष्य धर्म-अधर्म का गहरा विचार करने की हिम्मत कर ही नहीं सकता। वह न तो सत्य की खोज़ कर सकता है, न खोजे हुए सत्य पर दृढ़ रह सकता है। इस प्रकार उससे सत्य का पालन नहीं होता।
मनुष्य के लिए डरने योग्य वस्तु एक ही है. अपना विकारी चित्त। चाहे ईश्वर का डर कहो, चाहे अधर्म का डर कहो अथवा अपने विकार-रूपी शत्रुओं का डर कहो, तीनों एक ही हैं। यदि विकार न हो, तो अधर्म न रहे, और अधर्म न रहे, तो ‘ईश्वर का डर जैसे शब्दों का प्रयोग ही न करना पड़े।
नम्रता पर विचार | Politeness Quotes by Gandhi Ji in Hindi
हमारे सभी धर्म ग्रन्थों का एक ही मूलमंत्र है – जो नम्र होकर झुकते हैं, वही ऊपर उठते हैं।
नम्रता यानी मृदुता हमें अपने व्यवहार में रखनी ही चाहिए.
नम्रता के गुण को अहिंसा का ही एक अंश कह सकते हैं। जहाँ अहंकार है वहाँ नम्रता की कमी है। अहंकारी सर्वात्मभाव नहीं रख सकता, इसलिए उसकी अहिंसा में कमी आती है।
मैं भी कुछ हूँ मुझ में भी कुछ विशेषता है, ऐसा शरीर, मन, बुद्धि, विद्या, कला, चतुराई, पवित्रता, ज्ञान, भक्ति, उदारता, व्रत-पालन अथवा स्वयं विनय आदि गुणों का बराबर भान बना रहना और फलत: अपने अस्तित्व को इतना भारी मानना मानो कोई बोझा उठाकर चल रहे हों, अहंकार है।
इन बातों का कम से कम भान होना-जैसा अपने शरीर के स्वस्थ अवयवों के विषय में होता है—उसका नाम नम्रता है।
ऐसी नम्रता प्रयत्नपूर्वक सीखी नहीं जा सकती, बल्कि अनेक सदगुणों और विचारमय जीवन के परिणाम-स्वरूप वह स्वभाव का अंग बन जाती है। नम्र मनुष्य को अपनी नम्रता का भान भी नहीं होता।
अकसर प्रकट नम्रता के मूल में सूक्ष्म और तीव्र अभिमान छिपा रहता है। वह नम्रता नहीं।
अपनी मर्यादाओं को समझना और उन्हीं में रहना, यह भी नम्रता का एक आवश्यक लक्षण है।
नम्र मनुष्य संसार के सब कामों को कर सकने की शेखी न बघारे, बल्कि अपनी मर्यादा को अंकित करें और जब तक सफलता न मिले तब तक उसके बाहर पैर न रखे।
सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य आदि औरतों का साधक इनके पालन में यदि यह समझ ले कि आदर्श की तुलना में उसकी शक्ति कितनी अल्प है, तो वह सहज ही नम्र बनकर रहें।
स्त्री-जाति | Mahatma Gandhi Quotes in Hindi on Women
स्त्री जाती पर उनके द्वारा काफी कुछ लिखा गया.
उसी का कुछ अंश यहाँ प्रस्तुत है.
स्त्री और पुरुष में प्राकृतिक भेद है। इस कारण नित्य के जीवन में उन्हें जिन कर्तव्यों का पालन करना होता है, उनमें भी भेद हो सकते हैं, फिर भी इन दोनों में कोई ऊँचा या नीचा नहीं है, बल्कि दोनों समाज के समान महत्त्ववाले तथा प्रतिष्ठापात्र अंग हैं।
पुरुष स्त्री-जाति को एक ओर से दबाता है, अज्ञान रखता है, उसकी उपेक्षा और निन्दा करता है। दूसरी ओर से उसे अपने भोगों को तृप्त करने का साधनमात्र मानता है और इसके लिए वह स्त्री को गुड़िया की तरह अपनी इच्छा के अनुसार सजाता है, उसकी खुशामद करता है और इस प्रकार स्त्री की भोगवृत्ति को भड़काने का प्रयत्न करता है।
इन दोनों प्रकारों से केवल स्त्री-जाति का ही नहीं, बल्कि स्वयं पुरुष का और समूचे समाज का भारी अधःपतन हुआ है।
स्त्री-जाति के प्रति तुच्छता का जो भाव पुष्ट हुआ है, वह समाज में घुसी हुई एक सड़ांध है, धर्म का अंग नहीं। धार्मिक पुरुष भी इस प्रकार के तिरस्कार-भाव से मुक्त नहीं हैं, इससे पता चलता है कि यह सड़ांध कितनी गहरी चली गई है।
जो माता-पिता पालन पोषण और शिक्षा-दीक्षा में लड़कों और लड़कियों के बीच भेद करके लड़की के प्रति अपने कर्तव्य का पूरा पालन नहीं करते, वे पापाचरण करते हैं।
वयस्क होने पर पुरुष जितनी स्वतंत्रता का अधिकारी है, उतनी ही स्त्री भी है।
स्त्री अबला नहीं है; यदि वह अपनी शक्ति को समझे, तो पुरुष से भी अधिक सबला है। वह माता बनकर जिस प्रकार बालक को तैयार करती है और पत्नी बनकर जिस प्रकार पति का मार्गदर्शन करती है, अधिकतर पुरुष वैसे ही बनते हैं।
स्त्री-जाति में जो अपार शक्ति रही है, उसका कारण उसकी विद्धत्ता अथवा उसका शरीर-बल नहीं है, बल्कि उसका मुख्य कारण उसमें पाई जानेवाली तीव्र श्रद्धा, वेगवंती भावना और अत्यन्त त्याग की तथा सहन करने की शक्ति है।
स्त्री स्वभाव से ही कोमल और धार्मिक वृत्ति की है; और जहाँ पुरुष श्रद्धा खोकर ढीला पड़ जाता है अथवा गलत हिसाब करने में उलझ जाता है, वहाँ स्त्री धीर बनकर दृढ़ गति से सीधे मार्ग पर जाती है।
संसार में धर्म की रक्षा मुख्यतः स्त्री-जाति के कारण हुई है।
यदि स्त्री-जाति अपने बल और अपने कार्यक्षेत्र की दिशा को भलीभांति समझ लें, तो वह अपने को कभी पुरुष की आश्रित न माने, और पुरुष का तथा उसके कार्यों का अनुकरण करना ही उसका आदर्श न बने। वह पुरुष को रिझाने अथवा ललचाने के लिए अपने शरीर को सजाये नहीं, बल्कि अपने हृदय के गुणों से ही सुशोभित होने का प्रयत्न करें।
स्त्रियों को सार्वजनिक कार्यों में पुरुषों के समान ही हाथ बँटाना चाहिए।
मद्यपान-निषेध, पतित स्त्रियों का उद्धार आदि कुछ काम ऐसे हैं, जिन्हें स्त्रियाँ ही अधिक सफलतापूर्वक कर सकती हैं।
यह एक मिथ्या भ्रम है कि स्त्री को विवाह करना ही चाहिए। उसे भी आजीवन ब्रह्मचर्य-पालन का अधिकार है।
अपनी इच्छा के विरुद्ध पति की काम-वासना तृप्त करने के लिए स्त्री बंधी हुई नहीं है। वैसा करनेवाला पति व्यभिचार के जैसा ही दोष करता है।
अस्पृश्यता | Mahatma Gandhi Thoughts on Untouchability
गाँधी जी के समय में अस्पृश्यता काफी थी. नीची जाति के लोगों को छूना वर्जित होता था.
Untouchability पर महात्मा गाँधी जी के कुछ विचार.
अस्पृश्यता हिन्दू धर्म का अंग नहीं, बल्कि उसमें घुसी हुई सड़ांध है, वहम है, पाप है; और उसका निवारण करना प्रत्येक हिन्दू का धर्म है, उसका परम कर्तव्य है। यदि यह अस्पृश्यता समय रहते नष्ट न की गई, तो हिन्दू समाज और हिन्दू धर्म का अस्तित्व ही संकट में पड़ जायेगा।
जन्म के कारण मानी जानेवाली इस अस्पृश्यता की बदौलत अहिंसा-धर्म का और सर्वभूतात्म-भाव का लोप हो जाता है। इसके मूल में संयम नहीं, बल्कि उच्चता की उद्धत भावना ही है। इस कारण स्पष्ट ही यह अधर्म है. इसने धर्म के नाम पर लाखों अथवा करोड़ों मनुष्यों की स्थिति गुलामों जैसी कर डाली है।
सार्वजनिक मेलों, बाजारों, दुकानों, पाठशालाओं, धर्मशालाओं, मंदिरों, कुओं, रेलगाड़ियों और मोटरों आदि जिन जगहों में अन्य हिन्दुओं को स्वतंत्रता पूर्वक जाने और उनसे लाभ उठाने का अधिकार है, वहाँ अस्पृश्यों को भी वैसा अधिकार ही है।
उन्हें इस अधिकार से वंचित रखनेवाला अन्याय करता है इस अधिकार को स्वीकार करनेवाले उन पर मेहरबानी नहीं करते, बल्कि केवल अपनी ही भूल सुधारते हैं।
व्यापार | Quotes by Mahatma Gandhi on Business
व्यापार का योग्य क्षेत्र आवश्यक बड़े उद्योगों का विकास करना और जनता तक उसकी आवश्यकता की वस्तुएँ पहुँचाना है। इसमें से अनायास जो बचत रहे, उसे मुनाफा कहा जा सकता है।
अनायास बचत का अर्थ है उद्योग अथवा धंधे के सिलसिले में जो भी खर्च आवे, उसे माल पर चढ़ाते समय नुकसान की संभावना दूर करने के लिए जो थोड़ी छूट (मार्जिन) रखी हो उसकी बचत फुटकर रूप में बहुत नगण्य होती है, फिर भी उद्योग की विशालता के कारण हो सकता है कि कुल मिलाकर रकम काफी बड़ी हो जाय।
अनायास बचत का उपयोग उस उद्योग में काम करनेवाले मजदूरों के कल्याण के लिए अथवा उस उद्योग के या दूसरे उपयोगी उद्योगों के विकास के लिए अथवा सार्वजनिक हित के बड़े काम उठाने के लिए करना उचित है।
यदि ऐसे धन का मालिक अपने को उसका संरक्षक समझे और फिर उसका उपयोग करना अपना धर्म माने, तो व्यक्तिगत रूप से पूंजीपति माना जाने पर भी वह जनता का कल्याण करेगा और ईर्ष्या का पात्र नहीं बनेगा।
कर्म का सिद्धांत | Mahatma Gandhi Quotes in Hindi on Karma
कर्म पर जितना बल दिया जाए. थोड़ा है। मैं केवल गीता द्वारा दिए गए सिद्धांत को दुहरा रहा हूं जिसमें भगवान कहते हैं : “कि मैं अहर्निश कर्मरत न रहूं तो मैं मानव जाति के समक्ष एक गलत उदाहरण प्रस्तुत करूगा.
यदि मुझे भगवान बुद्ध जैसे महापुरुष के साक्षात्कार का सौभाग्य प्राप्त होता तो मैं निस्संकोच उनसे यह पूछता कि उन्होंने ध्यान के सिद्धांत की अपेक्षा कर्म के सिद्धांत का उपदेश क्यों नहीं दिया ? मैं यदि तुकाराम और ज्ञानदेव आदि संतों का साक्षात्कार कर पाता तो उनसे भी यही प्रश्न करता। (हरि, 2-11-1935, प्. 298)
ईश्वर ने मनुष्य को अपनी रोटी के वास्ते शारीरिक श्रम करने के लिए पैदा किया है मैं इस बात की संभावना से ही डर जाता हूं जब मनुष्य किसी जादू की छड़ी से खाद्यपदार्थों सहित अपनी आवश्यकता की सभी वस्तुओं का उत्पादन कर सकेगा।
जब तक दुनिया में एक भी समर्थन स्त्री पुरुष बिना काम अथवा भोजन के है तब तक हमें विश्राम करने अथवा भरपेट भोजन करने में लज्जा का अनुभव करना चाहिए।
इस भूखमरी के लिए अधिकांश हमारी उपेक्षा और अज्ञानता ही जिम्मेदार है। हम श्रम की गरिमा से ही अपरिचित हैं.
प्रेम | Mahatma Gandhi Quotes on Love in Hindi
मेरा प्रयास है कि मेरे जीवन का हर क्षण अहिंसा अर्थात प्रेम द्वारा निर्देशित हो मैं मूलत: शांतिप्रेमी हूं। मैं मनमुटाव पैदा करना नहीं चाहता | मैं अपने विरोधियों को यह आश्वासन देता हूं कि मैं ऐसा कोई काम नहीं करूंगा जिसे मैं सत्य और प्रेम के विरुद्ध समझता हूँ।
किसी पर अधिकार जमाने के लिए मेरे पास प्रेम के सिवा और कोई अस्त्र नहीं है।
मेरा लक्ष्य विश्व मैत्री है और मैं गलत काम का अधिकतम विरोध करते हुए भी अधिकतम प्रेम का परिचय दे सकता हूं। मुझे अपने लक्ष्य में इतनी अडिग आस्था है कि यह सफल हो जरूर होगा. इसे सफल होना ही है।
देश के युवा | Thoughts by Mahatma Gandhi on Youth
मेरी आशा का केंद्र देश का युवा वर्ग है। जो युवक मजबूरी में और बिना सोचे-समझे दुर्गुणों की ओर आकृष्ट हो गए हैं उन्हें समझना चाहिए कि इनके कारण स्वयं उन्हें और समाज को कितनी हानि पहुंची है। उन्हें यह भी समझना चाहिए कि कठोर अनुशासन में रहकर ही वे अपने को और देश को पूरी बर्बादी से बचा सकते हैं।
मुझे उच्च वर्ग के युवाओं में फैशन के प्रति दीवानगी को देखकर बड़ी मनोव्यथा होती है। वे यह नहीं जानते कि पश्चिम की इस मोहक चकाचौंध की गुलामी के कारण वे स्वयं को उन निर्धनतम देशवासियों से अलग-थलग कर रहे हैं जो कभी इन फैशनों को नहीं अपना सकते ।
मैं यह नहीं भूल सकता कि यदि हमारा युवा वर्ग इस झूठी शान के चक्कर में सादगी की वृत्ति को खो बैठा तो यह एक राष्ट्रीय महासंकट होगा, एक राष्ट्रीय त्रासदी होगी।
स्वास्थ्य | Mahatma Gandhi Quotes in Hindi on Health
यह पूरी तरह प्रमाणित हो चुका है कि मानव जाति को जो बीमारियां विरासत में मिली हैं, उनमें से अधिकांश के लिए स्वास्थ्य तथा स्वास्थ्य रक्षा के नियमों की अनभिज्ञता और अवहेलना जिम्मेदार है।
इसमें संदेह नहीं कि हमारे यहां की इतनी ऊंची मृत्यु दर का कारण मुख्य रूप से हमारी घोर दरिद्रता है, पर यदि लोगों को अपने स्वास्थ्य और स्वास्थ्य रक्षा के विषय में ठीक से शिक्षित किया जा सके तो इस समस्या का समाधान संभव है।
स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन मानव जाति का पहला नियम है। यह एक स्वतः स्पष्ट सत्य है। मन और शरीर के बीच अपरिहार्य संबंध है। अगर हमारे मन स्वस्थ होंगे तो हम सभी प्रकार की हिंसा का त्याग कर दें और स्वास्थ्य के नियमों का पालन करते हुए अपने शरीर को भी स्वस्थ रख सकेंगे।
स्वास्थ्य और स्वास्थ्य रक्षा के बुनियादी नियम बड़े सरल हैं और उन्हें से सीखा जा सकता है। कठिनाई केवल उनका पालन करते समय अनुभव होती है।
इनमें से कुछ नियम इस प्रकार हैं:
- विचारों को शुद्ध रखिए.
- निरर्थक और अशुद्ध विचारों को मन से निकाल दीजिए।
- दिन-रात शुद्ध वायु में श्वास लीजिए।
- शारीरिक और मानसिक श्रम के बीच संतुलन स्थापित कीजिए।
- सीधे खड़े होकर सीधे बैठिए और अपने हर काम में स्वच्छता बरतिए तथा इन्हें अपनी आंतरिक स्थिति का अभिव्यंजक बनाइए।
मानव सेवा के लिए जीने की खातिर भोजन करें विषय-भोगों के लिए न जिए। अतः आपका भोजन बस इतना हो कि वह आपके मन और शरीर को ठीक रख सके| आदमी जैसा खाता है, वैसा ही बन जाता है।
अंत:करण की आवाज़ | Mahatma Gandhi Thoughts in Hindi
जीवन में ऐसे क्षण आते हैं जब कुछ चीज़ों के लिए हमें बाह्य प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती हमारे अंदर से एक हल्की सी आवाज हमें बताती है कि तुम सही रास्ते पर हो, दायें बाएं मुड़ने की ज़रूरत नहीं है, सीधे और संकरे रास्ते पर आगे बढ़ते जाओ।
तुम्हारे जीवन में ऐसे क्षण आएंगे जब तुम्हें कदम उठाना होगा, चाहे तुम अपने घनिष्ट से घनिष्ट मित्रों को भी अपना साथ देने के लिए सहमत न कर सको। जब कर्तव्यविमूढ़ हो जाओ तो सदैव अंत:करण की आवाज़ को ही अपना अंतिम निर्णायक मानो।
मेरे प्रायश्चित कोई तांत्रिक क्रियाएं नहीं हैं। ये अंतःकरण की आवाज़ के आदेश पर किए जाते हैं।
दोस्तों उम्मीद है आपको हमारे द्वारा इकट्ठे किये गये ये Mahatma Gandhi Thoughts in Hindi, Mahatma Gandhi Quotes in Hindi पसंद आये होंगे. कुछ अन्य quotes यहाँ पढ़ें –
One Response
अपने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचार आपने जो आपके आर्टिकल में बताए हैं वह बहुत ही सुंदर है इस तरीके के आर्टिकल में शब्दों को कैसे संभालना चाहिए यह आपने बिल्कुल किया हुआ है धन्यवाद आपका यह अनुभव हमारे साथ शेयर करने के लिए