हमारे देश में जन्माष्टमी के त्यौहार को बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है. यह त्यौहार श्री कृष्ण के जन्म के उत्सव के रूप में मनाया जाता है. आज हम आपको भगवान श्री कृष्ण की बसाई हुई द्वारिका नगरी से जुड़े रहस्यों के बारे में बताएंगे. यह नगरी श्रीकृष्ण ने समुद्र में बसाई थी.
अरब सागर में गुजरात के तटिये क्षेत्र काठियावाड पर भगवान श्री कृष्ण ने बसाई थी अपनी द्वारिका नगरी. इस जगह को हिन्दू धर्म में महत्व तो दिया ही जाता है मगर इसके साथ-साथ इस जगह का रहस्य भी आश्चर्यजनक है.
इसके बारे में कहा जाता है कि श्री कृष्ण द्वारा बसाई गई यह द्वारिका नगरी उनकी मृत्यु के साथ ही डूब गई थी. यह नगरी समुद्र में आज भी मौजूद हैं. आज भी इसी जगह पर इस द्वारिका नगरी के होने के अवशेष मिलते हैं. मगर आजतक इस बात का कोई प्रमाण नहीं मिल सका है कि यह निर्माण महाभारत के समय में हुआ था. विज्ञान इस बात से मना करता है.
द्वारका की खोज
कई सालों पहले नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ ओसियनोग्राफी ने जब गुजरात में समुद्र के भीतर अपनी खोज शुरू की तब उन्हें इस जगह पर प्राचीन द्वारिका से जुड़े हुए अनेकों अवशेष प्राप्त हुए. यहाँ पर हुई खोज से पता चला कि यह शहर चारों तरफ से ऊँची और लम्बी दीवारों से घिरा हुआ था. ये दीवारें आज भी समुन्दर कि गहराई में देखी जा सकती हैं. इन दीवारों में अनेकों दरवाजे यानी द्वार हैं. इस वजह से यह भी कहा जाता है कि अनेकों द्वार होने कि वजह से इसे द्वारिका नगरी कहा गया है.
मिले ताम्बे के सिक्के और ग्रेनाइट स्ट्रक्चर
समुद्र में खोज के समय यहाँ पर करीब 3 हज़ार साल पहले के बर्तन मिले थे. यह रिपोर्ट 1963 में द हिन्दू में छपी थी. इस रिपोर्ट के मुताबिक द्वारिका नगरी का उत्खनन गुजरात सरकार और डेक्कन कॉलेज, पुणे के डिपार्टमेंट ऑफ़ आर्कियोलॉजी ने मिलकर किया था.
इस रिसर्च के 10 साल बाद आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया की अंडर वॉटर आर्कियोलॉजी विंग को इसी जगह से ताम्बे के सिक्के और कुछ ग्रेनाइट से बने हुए कलाकृतियाँ मिली थी.
आज भी इस जगह पर खोज चलती रहती है. आजतक इस बात को ठोस सबूत के साथ नहीं कहा जा सकता कि इस नगरी का निर्माण श्रीकृष्ण ने करवाया था.
द्वारिका नगरी क्यों डूबी?
पुराणों में ऐसा लिखा मिलता है कि भगवान श्रीकृष्ण यहाँ पर अपने 18 साथियों के साथ आये थे और इस नगरी की स्थापना की थी. इस नगरी में उन्होंने 36 साल राज किया और इसके बाद अपने प्राण त्याग दिए जिसके बाद उनके द्वारा स्थापित यह द्वारिका नगरी समुद्र में समा गई और उनका यादव कुल भी नष्ट हो गया.
द्वारका नगरी के डूबने और यादव कुल के विनाश के पीछे कई वजह बताई जाती हैं. ऐसा भी कहा जाता है कि इसके पतन की वजह श्रीकृष्ण को दिए हुए श्राप थे.
माता गांधारी का श्राप
जब महाभारत के युद्ध में पांडवों ने विजय प्राप्त की और उसके बाद श्रीकृष्ण जब युधिष्ठिर को राजगद्दी पर बैठा कर उन्हें उनका राज्यभार समझाया. इसके बाद श्रीकृष्ण ने अपनी द्वारिका नगरी लौट जाने के लिए वे कौरवों की माता गांधारी से विदा लेने पहुंचे. तब श्रीकृष्ण के सामने गांधारी फूट-फूटकर रोने लगी और फिर अपने क्रोध के वस में होकर उन्होंने श्रीकृष्ण को श्राप दिया कि जिस तरह से तुमने मेरे कुल का विनाश किया है, उसी तरह से एक दिन तुम्हारे कुल का भी विनाश हो जाएगा।
श्रीकृष्ण साक्षात भगवान थे, अगर वे चाहते तो माता गांधारी के इस श्राप को अपनी शक्तियों से निष्फल भी कर सकते थे, मगर उन्होंने अपने मानव अवतार का मान रखा और गांधारी को प्रणाम करके बिना उनके पैर छुए वहां से चले गए। अगर श्रीकृष्ण ऐसा करते तो गांधारी उसे आशीर्वाद देने के लिए बाध्य हो जाती और श्रीकृष्ण उन्हें धर्म संकट में नहीं डालना चाहते थे।
इसके बाद जब एक दिन श्रीकृष्ण एक पेड़ की छाँव में विश्राम कर रहे थे तब जरा नामक शिकारी ने श्रीकृष्ण के पैर को दूर से हिरण का मुख समझकर तीर चला दिया। उसके बाद जब वह शिकारी अपना शिकार उठाने के लिए वहां पर पहुंचा तब वह श्रीकृष्ण से क्षमा मांगने लगा। तब श्रीकृष्ण ने उसे क्षमा दान देकर अपने प्राण त्याग दिए।
श्रीकृष्ण के देह त्याग देने के बाद उनकी द्वारिका नगरी भी समन्दर के गर्भ में समा गई.
दूसरा श्राप:
वेदों-पुराणों में प्रचलित कहानियों के अनुसार, माता गांधारी के श्राप के आलावा एक दूसरा श्राप भी यदुवंश के पतन का कारण था. दूसरा श्राप ऋषियों द्वारा श्रीकृष्ण के पुत्र सांब को दिया गया था.
यह घटना उस समय घटित हुई थी जब महर्षि विश्वामित्र, देवर्षि नारद आदि द्वारिका नगरी पहुंचे थे. तब वहां पर यादव कुल के कुछ युवकों ने इन विद्वान ऋषियों का मजाक उड़ाया था. तब ऋषि अपने इस अपमान से क्रोधित हो गए थे और उन्होंने श्री कृष्ण के पुत्र को श्राप दिया कि श्रीकृष्ण का यही पुत्र अपने यदुवंशी कुल के विनाश का कारण बनेगा और इसके लिए वह लोहे का एक ऐसा मूसल का निर्माण करेगा जिससे वे खुद ही अपने वंश का विनाश कर लेंगें.