एक दिन मैंने दोस्तों के व्हाट्सएप स्टेटस पर Tehzeeb Hafi Shayari देखी। पहली बार, मैंने छोड़ दिया, लेकिन, एक सुनने के बाद, मुझे एहसास हुआ कि तहज़ीब हाफ़ी शायरी कोई ऐसी वैसी शायरी नहीं है।
मैंने उन्हें YouTube पर खोजा और उनकी शायरी सुनी। वे वास्तव में बहुत अच्छी शायरी करते हैं। और वे उस प्यार के योग्य हैं जो उन्हें मिल रहा है। मैंने उनकी बहुत सारी कविताएँ पढ़ीं और मुझे ये शायरियाँ बहुत अच्छी लगीं, जो roshandaan.com ब्लॉग पर प्रकाशित होने के लिए बहुत ही बढ़िया हैं।
तहज़ीब हाफी कौन हैं?
उनके बारे में बहुत कम जाना जाता है। मैंने नेट पर ढूंढने की कोशिश की लेकिन उनके बारे में कोई भी जीवनी संबंधी कुछ भी खोजने में विफल रहा। Youtube पर कुछ इंटरव्यूज हुए, लेकिन वे सभी एक ही थे।
अभी मैं सिर्फ यही कह सकता हूं कि वे पाकिस्तान से हैं। हमें इंतजार करना होगा, जब तक कि कुछ पाकिस्तानी आदमी उस पर शोध न कर लें और थोड़ा इन्टरनेट पर लिख दें।
तहज़ीब हाफी शायरी के बारे में
तहज़ीब हाफ़ी की पोएट्री के बारे में एक बात मैंने गौर की, उनकी हर ग़ज़ल में पर्यावरण से संबंधित शायरियां थीं। ज्यादातर पेड़ों के बारे में।
रेत, नदियां, जंगल और दरख्त (पेड़) के बारे में शायरी है। तहज़ीब हाफ़ी प्रकृति का पालन करते हैं, और उनकी शायरी से ऐसा लगता है कि वह प्रकृति से दोस्ती करना चाहते हैं। उन्होंने महबूब के बारे में भी बहुत कुछ लिखा है।
Best Collection of Tehzeeb Hafi Shayari
यार ये कैसा महबूब है – Tehzeeb Hafi Shayari
घर में भी दिल नहीं लग रहा, काम पर भी नहीं जा रहा
जाने क्या ख़ौफ़ है जो तुझे चूम कर भी नहीं जा रहा।
रात के तीन बजने को हैं, यार ये कैसा महबूब है?
जो गले भी नहीं लग रहा और घर भी नहीं जा रहा।
उसके घर का पता जानते हो – तहज़ीब हाफी
तुम्हें हुस्न पर दस्तरस है बहोत, मोहब्बत वोहब्बत बड़ा जानते हो
तो फिर ये बताओ कि तुम उसकी आंखों के बारे में क्या जानते हो?
ये ज्योग्राफियाँ, फ़लसफ़ा, साइकोलोजी, साइंस, रियाज़ी वगैरह
ये सब जानना भी अहम है मगर उसके घर का पता जानते हो?
[ दस्तरस = पहुंच ( reach, access ) ]
Main Ped Kaat ke Kashti Nhi Banaunga – Tehzeeb Hafi Shayari
गली से कोई भी गुज़रे तो चौंक उठता हूँ
नये मकान में खिड़की नहीं बनाऊंगा।
फरेब दे कर तेरा जिस्म जीत लूँ लेकिन
मैं पेड़ काट के कश्ती नहीं बनाऊंगा।
तुम्हें पता तो चले बेजबान चीज का दुःख
मैं अब चराग की लौ ही नहीं बनाऊंगा।
मैं दुश्मनों से जंग अगर जीत भी जाऊं
तो उनकी औरतें कैदी नहीं बनाऊंगा।
मैं एक फिल्म बनाऊंगा अपने सरवत पर
उसमें रेल की पटरी नहीं बनाऊंगा।
Tera Chup Rahna Mere Zehan Mein Kya Baith Gaya
तेरा चुप रहना मिरे ज़ेहन में क्या बैठ गया
इतनी आवाज़ें तुझे दीं कि गला बैठ गया
यूँ नहीं है कि फ़क़त मैं ही उसे चाहता हूँ
जो भी उस पेड़ की छाँव में गया बैठ गया
इतना मीठा था वो ग़ुस्से भरा लहजा मत पूछ
उस ने जिस जिस को भी जाने का कहा बैठ गया
अपना लड़ना भी मोहब्बत है तुम्हें इल्म नहीं
चीख़ती तुम रही और मेरा गला बैठ गया
उस की मर्ज़ी वो जिसे पास बिठा ले अपने
इस पे क्या लड़ना फलाँ मेरी जगह बैठ गया
बात दरियाओं की सूरज की न तेरी है यहाँ
दो क़दम जो भी मिरे साथ चला बैठ गया
बज़्म-ए-जानाँ में नशिस्तें नहीं होतीं मख़्सूस
जो भी इक बार जहाँ बैठ गया बैठ गया
[ बज़्म-ए-जानाँ – महबूब की महफ़िल, मख्सूस- आरक्षित/reserved ]
चोरी कर लेना है – तहज़ीब हाफी शायरी
मल्लाहों का ध्यान बटाकर दरिया चोरी कर लेना है,
क़तरा क़तरा करके मैंने सारा चोरी कर लेना है।
तुम उसको मजबूर किए रखना बातें करते रहने पर
इतनी देर में मैंने उसका लहज़ा चोरी कर लेना है।
आज तो मैं अपनी तस्वीर को कमरे में ही भूल आया हूँ
लेकिन उसने एक दिन मेरा बटुआ चोरी कर लेना है।
मेरे ख़ाक उड़ाने पर पाबन्दी आयत करने वालों
मैंने कौन सा आपके शहर का रास्ता चोरी कर लेना है।
तू तीर है तो मेरे कलेजे के पार हो – तहज़ीब हाफी
जो तेरे साथ रहते हुए सोगवार हो,
लानत हो ऐसे शख़्स पे और बेशुमार हो।
अब इतनी देर भी ना लगा, ये हो ना कहीं
तू आ चुका हो और तेरा इंतज़ार हो।
मै फूल हूँ तो फिर तेरे बालो में क्यों नही हूँ
तू तीर है तो मेरे कलेजे के पार हो।
एक आस्तीन चढ़ाने की आदत को छोड़ कर
‘हाफ़ी’ तुम आदमी तो बहुत शानदार हो।
[ सोगवार – दुखी/उदास ]
Tehzeeb Hafi Poetry
तू हमें चूमता था – तहज़ीब हाफी शायरी
जहन पर जोर देने से भी याद नहीं आता कि हम क्या देखते थे
सिर्फ इतना पता है कि हम आम लोगों से बिल्कुल जुदा देखते थे।
तब हमें अपने पुरखों से विरसे में आई हुई बद्दुआ याद आई
जब कभी अपनी आंखों के आगे तुझे शहर जाता हुआ देखते थे।
सच बताएं तो तेरी मोहब्बत ने खुद पर तवज्जो दिलाई हमारी
तू हमें चूमता था तो घर जाकर हम देर तक आईना देखते थे।
सारा दिन रेत के घर बनते हुए और गिरते हुए बीत जाता
शाम होते ही हम दूरबीनों में अपनी छतों से खुदा देखते थे।
उस लड़ाई में दोनों तरफ कुछ सिपाही थे जो नींद में बोलते थे
जंग टलती नहीं थी सिरों से मगर ख्वाब में फ़ाख्ता देखते थे।
दोस्त किसको पता है कि वक़्त उसकी आँखों से फिर किस तरह पेश आया
हम इकट्ठे थे हंसते थे रोते थे एक दूसरे को बड़ा दखते थे।
लड़कियाँ इश्क़ में कितनी पागल होती हैं – Tehzeeb Hafi
थोड़ा लिखा और ज़्यादा छोड़ दिया
आने वालों के लिए रास्ता छोड़ दिया।
लड़कियाँ इश्क़ में कितनी पागल होती हैं
फ़ोन बजा और चूल्हा जलता छोड़ दिया।
तुम क्या जानो उस दरिया पे क्या गुजरी
तुमने तो बस पानी भरना छोड़ दिया।
बस कानों पर हाथ रख लेते थोड़ी देर
और फिर उस आवाज़ ने पीछा छोड़ दिया।
सब परिंदों से प्यार लूँगा मैं – तहज़ीब हाफी
सब परिंदों से प्यार लूँगा मैं
पेड़ का रूप धार लूँगा मैं।
रात भी तो गुजार ली मैंने
जिन्दगी भी गुजार लूंगा मैं।
तू निशाने पे आ भी जाए अगर
कौन सा तीर मार लूँगा मैं।
क्या हुआ – तहज़ीब हाफी शेर
एक और शख़्स छोड़कर चला गया तो क्या हुआ
हमारे साथ कौन सा ये पहली मर्तबा हुआ।
अज़ल से इन हथेलियों में हिज्र की लकीर थी
तुम्हारा दुःख तो जैसे मेरे हाथ में बड़ा हुआ।
मेरे खिलाफ दुश्मनों की सफ़ में है वो और मैं
बहुत बुरा लगूँगा उस पर तीर खींचता हुआ।
Us Ladki Se – Tehzeeb Hafi Sher
ख्वाबों को आँखों से मिन्हा करती है
नींद हमेशा मुझसे धोखा करती है।
उस लड़की से बस अब इतना रिश्ता है
मिल जाए तो बात वगैरा करती है।
तहज़ीब हाफी शायरी हिंदी में
गए वक्तू में हम दरिया रहे हैं – तहज़ीब हाफी
अब उस जानिब से इस कसरत से तोहफे आ रहे हैं
के घर में हम नई अलमारियाँ बनवा रहे हैं।
हमे मिलना तो इन आबादियों से दूर मिलना
उससे कहना गए वक्तू में हम दरिया रहे हैं।
तुझे किस किस जगह पर अपने अंदर से निकालें
हम इस तस्वीर में भी तूझसे मिल के आ रहे हैं।
हजारों लोग उसको चाहते होंगे हमें क्या
के हम उस गीत में से अपना हिस्सा गा रहे हैं।
बुरे मौसम की कोई हद नहीं तहजीब हाफी
फिजा आई है और पिंजरों में पर मुरझा रहे हैं।
अब वो मेरे ही किसी दोस्त की मनकूहा है – Tehzeeb Hafi
ख़ाक ही ख़ाक थी और ख़ाक भी क्या कुछ नहीं था
मैं जब आया तो मेरे घर की जगह कुछ नहीं था।
क्या करूं तुझसे ख़यानत नहीं कर सकता मैं
वरना उस आंख में मेरे लिए क्या कुछ नहीं था।
ये भी सच है मुझे कभी उसने कुछ ना कहा
ये भी सच है कि उस औरत से छुपा कुछ नहीं था।
अब वो मेरे ही किसी दोस्त की मनकूहा है
मै पलट जाता मगर पीछे बचा कुछ नहीं था।
[ ख़यानत = अमानत रखी वस्तु को चुरा लेना, मनकूहा = विवाहित, ब्याही हुई स्त्री ]
ये किस तरह का ताल्लुक है – तहज़ीब हाफी शायरी
ये किस तरह का ताल्लुक है आपका मेरे साथ
मुझे ही छोड़ के जाने का मशवरा मेरे साथ।
यही कहीं हमें रस्तों ने बद्दुआ दी थी
मगर मैं भुल गया और कौन था मेरे साथ।
वो झांकता नहीं खिड़की से दिन निकलता है
तुझे यकीन नहीं आ रहा तो आ मेरे साथ।
चोर दरवाज़ा बना लेता – Tehzeeb Hafi Shayari in Hindi
तुझे भी अपने साथ रखता और उसे भी अपना दीवाना बना लेता
अगर मैं चाहता तो दिल में कोई चोर दरवाज़ा बना लेता।
मैं अपने ख्वाब पूरे कर के खुश हूँ पर ये पछतावा नही जाता
के मुस्तक़बिल बनाने से तो अच्छा था तुझे अपना बना लेता।
अकेला आदमी हूँ और अचानक आये हो, जो कुछ था हाजिर है
अगर तुम आने से पहले बता देते तो कुछ अच्छा बना लेता।
अगर कभी तेरे नाम पर जंग हो गई तो – तहज़ीब हाफी
उसी जगह पर जहाँ कई रास्ते मिलेंगे
पलट के आए तो सबसे पहले तुझे मिलेंगे।
अगर कभी तेरे नाम पर जंग हो गई तो
हम ऐसे बुजदिल भी पहले सफ में खड़े मिलेगे।
तुझे ये सड़के मेरे तवस्सुत से जानती हैं
तुझे हमेशा ये सब इशारे खुले मिलेंगे।
[ तवस्सुत = मतलब, मध्यस्थता ]
Tehzeeb Hafi Sher-o-Shayari
दीया जले – तहज़ीब हाफी शायरी हिंदी में
तारीकियों को आग लगे और दीया जले
ये रात बैन करती रहे और दीया जले।
उसकी जबान में इतना असर है कि निशब्द
वो रौशनी की बात करे और दीया जले।
तुम चाहते हो कि तुमसे बिछड़ के खुश रहूँ
यानि हवा भी चलती रहे और दीया जले।
क्या मुझसे भी अज़ीज़ है तुमको दीए की लौ
फिर तो मेरा मज़ार बने और दीया जले।
सूरज तो मेरी आँख से आगे की चीज़ है
मै चाहता हूँ शाम ढले और दीया जले।
[ बैन = विलाप (lamentation) ]
Mar Jana Par Kisi Gareeb Ke Kaam Naa Aana – Tehzeeb Hafi
धूप पड़े उस पर तो तुम बादल बन जाना
अब वो मिलने आये तो उसको घर ठहराना।
तुमको दूर से देखते देखते गुज़र रही है
मर जाना पर किसी गरीब के काम न आना।
शहज़ादी – तहज़ीब हाफी शायरी हिंदी में
तू ने क्या क़िन्दील जला दी शहज़ादी
सुर्ख़ हुई जाती है वादी शहज़ादी
शीश-महल को साफ़ किया तिरे कहने पर
आइनों से गर्द हटा दी शहज़ादी
अब तो ख़्वाब-कदे से बाहर पाँव रख
लौट गए हैं सब फ़रियादी शहज़ादी
तेरे ही कहने पर एक सिपाही ने
अपने घर को आग लगा दी शहज़ादी
मैं तेरे दुश्मन लश्कर का शहज़ादा
कैसे मुमकिन है ये शादी शहज़ादी
वो ज़ुल्फ़ सिर्फ़ मिरे हाथ से सँवरनी है – Tehzeeb Hafi Poetry
न नींद और न ख़्वाबों से आँख भरनी है
कि उस से हम ने तुझे देखने की करनी है।
किसी दरख़्त की हिद्दत में दिन गुज़ारना है
किसी चराग़ की छाँव में रात करनी है।
वो फूल और किसी शाख़ पर नहीं खिलता
वो ज़ुल्फ़ सिर्फ़ मिरे हाथ से सँवरनी है।
तमाम नाख़ुदा साहिल से दूर हो जाएँ
समुन्दरों से अकेले में बात करनी है।
हमारे गाँव का हर फूल मरने वाला है
अब उस गली से वो ख़ुश्बू नहीं गुज़रनी है।
2 Responses
तहज़ीब हाफी , क्या बात है , आपको हजारों बार धन्यवाद !
Thank You So Much
Regards
अभिषेक
So nice..