Short Motivational Stories in Hindi
कई बार छोटी से छोटी घटना (प्रेरक कहानी) भी हमें बहुत बड़ी सीख दे जाती है। इसलिए आज हम आपके साथ ऐसे ही कुछ घटनाएं या प्रेरक कहानी share कर रहे हैं जो हमें बहुत कुछ अच्छा सीखाने का प्रयास करती हैं।आइये देखते हैं Motivational Stories for Kids in Hindi.
सभी घटनाएं इतिहास से ली गई सच्ची घटनाएं हैं.
Motivational Stories in Hindi
प्रेरक कहानी #1 – समर्पण की भावना
संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान वाचस्पति मिश्र को विवाह हुए छत्तीस वर्ष गुजर गये थे, किन्तु वे यह भी नहीं जानते थे कि उनकी पत्नी कौन है? एक दिन वे ब्रह्मसूत्र के शंकर भाष्य पर टीका लिख रहे थे, किन्तु एक पंक्ति कुछ ढंग से नहीं लिखी जा रही थी। दीपक भी कुछ धुंधला हो चला, शायद ठीक तरह से दिख भी नहीं रहा था। उनकी पत्नी दीपक की लौ बढ़ा रही थी। इतने में वाचस्पति मिश्र की नजर उस पर पड़ी।
उन्होंने पूछा-“तुम कौन हो?”
“मैं आपकी पत्नी हूँ। आज से छत्तीस वर्ष पहले हमारा विवाह हुआ था।”
“तुम्हारे साथ मेरा विवाह हुआ। शास्त्रों का भाष्य करते-करते मैं तो यह बात भूल ही चुका था। छत्तीस वर्ष तुमने मौन रहकर मेरी सेवा की है। हे देवी! तुम्हारे त्याग व उपकार अनंत हैं। अपनी इच्छा बताओ।”
“स्वामी, मेरी कोई इच्छा नहीं है। आपने मानव जाति के कल्याण के लिए अनेक शास्त्रों की टीकाएँ लिखी हैं। मैं आपकी सेवा से कृतकृत्य हूँ।”
“हे देवी! तुम्हारा नाम क्या है?”
“इस दासी को भामती कहते हैं स्वामी।”
“मैं शंकर भाष्य पर जो टीका लिख रहा हूँ, उसका नाम मैं भामती टीका रगा।”
और वे फिर लिखने में व्यस्त हो गये। दोनों में कैसी समर्पण की भावना थी! पति अपने मानव-मात्र के कल्याण के लिए समर्पित था, तो उनके कर्त्तव्य से अभिभूत हो भामती युवा-सुख भूलकर पति की सेवा में लगी रही। यहां कोई कह सकता है कि जिस युग में भामती हुई थी, वह आज से अलग था? आज तो महिलायें पुरुषों के साथ कदम-से-कदम मिलाकर चल रही हैं।
निवेदन:
यह सब ठीक है पति और पत्नी दोनों को बराबर के अधिकार हैं, लेकिन यदि पति परमार्थ के कार्य पर चलता हुआ, घर-गृहस्थी के कर्तव्यों को भी भूल जाता है, तो पत्नी का धर्म हो जाता है कि वह उस पर गुजारा-भत्ता आदि के मुकदमे दायर न करे और कोर्ट-कचहरी के चक्कर न लगाये, बल्कि स्वयं युग के मुताबिक, स्वयं भी कुछ नौकरी आदि कर सकती है। लेकिन यदि पति चालाक, धूर्त और अधर्म के कर्मों में लिप्त है तो ऐसी अवस्था में पत्नी उसे कोर्ट तो क्या, भरी पंचायत में भी घसीट सकती है, फिर उसके साथ हमारी हमदर्दी भी है।
प्रेरक कहानी #2 – संस्कार और धर्म पालन
Motivational Stories in Hindi
तमिल कवि वल्लुवर की स्त्री का नाम वासुकी था। वह बड़ी ही पतिव्रता थी। विवाह के दिन वल्लुवर ने खाना परोसते समय उससे कहा-“मेरे खाते समय नित्य एक कटोरे में पानी तथा एक सुई रख दिया करो।” वासुकी ने जीवन पर्यन्त पति की इस आज्ञा का पालन किया।
जीवन के अंतिम क्षणों में जब वल्लुवर ने उससे पूछा-“तुम्हें कुछ चाहिए? क्या कोई इच्छा है तुम्हारी?”
“हाँ! एक बात पूछनी है। विवाह के दिन आपने भोजन करते समय नित्य एक कटोरा पानी और एक सुई रखने को कहा था। मैंने आपसे उसका प्रयोजन पूछे बिना ही यह कार्य प्रतिदिन किया। तथापि आज यह जानने की मेरी इच्छा हो रही है कि आप ये दोनों चीजें क्यों मांगा करते थे? यदि बता दें तो मैं शांति से मर सकूं।”
वल्लुवर ने स्नेहपूर्वक उत्तर दिया-“मैंने इसलिए पानी और सूई रखने के लिए कहा था कि यदि चावल के दाने गिर पड़ें, तो उन्हें सूई से उठाकर पानी से धोकर खा सकू, किंतु तुम इतनी दक्ष थीं कि तुमने एक दिन भी सूई और पानी का उपयोग करने का मुझे अवसर ही नहीं दिया।”
वासुकी का यह उद्धरण काल्पनिक नहीं, बल्कि वास्तविक हैं, जिन्होंने सुहागिन होते हुए भी अपने यौवन का त्याग कर दिया, लेकिन जन-कल्याण में लगे हुए अपने माथे के सिंदूर की लाली फीकी न पड़ने दी।
ऊपर पौराणिक उदाहरण दिये गये हैं, लेकिन यदि आप कहेंगे कि हमें संत या कवि नहीं बनना, हम तो कुछ नया करना चाहते हैं. तो भाई हम कहां कहते हैं कि आप कुछ नया न करो! लेकिन इस दुनिया में कुछ नया तो है नहीं। जितने तत्व धरती के निर्माण के समय थे, उतने ही आज हैं। कोई तत्व न तो घटा है और न ही बढ़ा है।
ऊंचाई को छूने की ललक में अपनी मान-मर्यादा, संस्कार और दीन-धर्म को नहीं त्यागा जा सकता है। यदि सफलता के लिए यह सब छोड़ना पड़े तो धिक्कार है ऐसी उन्नति को। इसलिए अपने इतिहास से हमें शिक्षा तो लेनी ही चाहिए।
प्रेरक कहानी #3 – दृढ़ संकल्प शक्ति
जिस मनुष्य के भीतर दृढ़ संकल्प शक्ति होती है, वही व्यक्ति अपने भीतर ऊंचा उठने की शक्ति को महसूस करता है। हमें यह न भूलना चाहिए कि यश संकल्प पर आधारित होता है, मनुष्य संकल्प के बलबूते पर ही उन्नति करता है। संकल्प वह चमत्कारी जादू है, जिसे दैनिक जीवन में नियमित रूप से अपनाने से मानव का कायाकल्प हो जाता है।
संकल्प उस अटल निश्चय का नाम है, जिससे मानव सही मार्ग पर चलने के लिए आत्मबल और दृढ़ता चंद्रशेखर आजाद ने मातृभूमि को आजाद कराने का संकल्प लिया था। उन दिनों गाजीपुर के महन्त बीमार थे।
उन्होंने साहित्यकार रामकृष्ण खत्री से कहा-“आपकी निगाह में अगर कोई सुशील, सच्चरित्र लड़का हो तो बताएँ, उसे अपना शिष्य बनाकर इस मठ की व्यवस्था करके उसके सुपुर्द करना चाहता हूँ. “
खत्री जी क्रांतिकारियों के साथ काम कर रहे थे, उन्होंने इसकी चर्चा की तो चंद्रशेखर आजाद भी शिष्य बनने को तैयार हो गये।
खत्री जी ने कहा-“तुम पागल तो नहीं हो? साधु बनोगे? सिर घुटवाना पड़ेगा, दीक्षा लेनी पड़ेगी और सेवा करनी होगी, दिन-रात मठ में तो रहना ही होगा.”
आजाद ने कहा-“मेरे साहित्यकार भाई! मठ में काफी संपत्ति है। हमारी पार्टी को धन की बहुत आवश्यकता है। अगर धन होगा तो पार्टी बहुत मजबूत होगी, पार्टी मजबूत होगी तो देश जल्दी आजाद हो जायेगा। अपने देश को आजाद करवाने के लिए मैं कुछ भी करने को तैयार हूँ।”
“तुम्हारा परिचय किस नाम से करवाया जाए?”
“एक कवि के नाम से करवा देना बस।”
“अगर महन्त जी कविता सुनाने के लिए कहने लगे तो?”
“देश की आजादी के लिए मैं क्रांतिकारी बन सकता हूँ, तो क्या कवि नहीं बन सकता? साहित्यकार होकर भी क्या तुम नहीं जानते कि कलम तलवार से भी बड़ा शस्त्र होता है।” कहकर आजाद गंभीर हो गये।
आजाद जैसा दृढ़ संकल्प यदि तुम करोगे तो निश्चय ही सफलता तुम्हारे कदमों को चूमेगी।
प्रेरक कहानी #4 – स्वाभिमान
एक बार अलवर के राजा ने अपना कहानी-उपन्यास पढ़ने का शौक पूरा करने के लिए प्रेमचंद को चार सौ रुपये मासिक वेतन पर नियुक्ति के लिए बुलाया। साथ ही बंगला और मोटर देने को भी कहा।
प्रेमचंद ने राजा साहब को जवाब लिख भेजा-“क्षमा कीजिए। इतनी ही क्या कम कृपा की। बात यह है कि आप मेरी कहानियाँ और उपन्यास चाव से पढ़ते हैं, मैं इससे बहुत संतुष्ट हूँ।”
प्रेमचंद का स्वाभिमान भला किसी राजा की गुलामी स्वीकार कर सकता था? कदाचित् नहीं, लेकिन कुछ मनोविनोद के लिए उन्होंने अपनी पत्नी शिवरानी से कहा-“मेरी इच्छा है कि चलो, कुछ दिन मोटर-बंगले का शौक तो पूरा कर लूँ। मेरी कमाई में इसकी गुंजाइश नहीं।”
शिवरानी देवी बड़ी समझदार थीं, तुरन्त जवाब दिया-“यह इसी तरह हुआ, जिस तरह कोई कुलवधू अपनी शारीरिक जरूरतों को पूरा करने के लिए कुमार्ग पर चल पड़े। लेकिन जिसने मजदूरी करना अपना उद्देश्य बना लिया हो, उनके लिए मोटर-बंगले की इच्छा कैसी?”
प्रेरक कहानी #5 – कृतज्ञ रहें
भारतेंदु बाबू हरिश्चंद्र अपनी उदारता के कारण लगभग कंगाल हो चुके थे। एक समय ऐसा आया कि जब उनके पास इतने भी पैसे नहीं थे कि आये हुए पत्रों का उत्तर भेज सकें। जो पत्र आते थे, उनके उत्तर लिखकर लिफाफे में बंद कर भारतेंदु जी मेज पर रख देते थे। उन पर टिकट लगाने को पैसे हों तो पत्र भेजे जाएँ। उनकी मेज पर पत्रों की एक ढेरी एकत्र हो गयी थी।
उनके एक मित्र ने उन्हें पाँच रुपये के डाक टिकट लाकर दिये, तब वे लेटर बॉक्स में डाले गये। बाबू जी ने मुसीबतों से हिम्मत नहीं हारी। जिसका परिणाम यह हुआ कि कुछ समय बाद भारतेंदु जी स्थिति थोड़ी ठीक हुई। जब-जब वे मित्र से मिलते थे, तब-तब भारतेंदु जी जबरदस्ती उनकी जेब में पाँच रुपये डाल देते और कहते-“आपको स्मरण नहीं, आपके पाँच रुपये मुझ पर ऋण हैं।”
मित्र ने एक दिन कहा-“मुझे अब आपसे मिलना बंद कर देना पड़ेगा।” भारतेंदु बाबू के नेत्र भर आये। वे बोले-“भाई तुमने मुझे ऐसे समय पाँच रुपये दिये थे कि मैं जीवनभर तुम्हें प्रतिदिन अब पाँच रुपये देता रहूं, तो भी तुम्हारे ऋण से छुट नहीं सकता।”
यह थी कृतज्ञता की पराकाष्ठा। अपने बुरे वक्त को मत भूलिए और बुरे वक्त में जिन लोगों ने आपकी मदद की उन्हें तो बिल्कुल मत भूलिये। ऐसा करना आपके उन्नति मार्ग को प्रशस्त करता है।
प्रेरक कहानी #6 – आशावादी बनें
दरअसल यह कोई कहानी नहीं बल्कि एक छोटा सा प्रसंग है.
एक बार एक कार्यक्रम में किसी साहित्यकार ने आधुनिक मनुष्य की तुलना राक्षस जाति से कर डाली, तो प्रत्युत्तर में प्रख्यात कवयित्री महादेवी वर्मा ने कहा-
“मनुष्य का जीवन इतना एकांगी नहीं है कि उसे हम केवल अर्थ, केवल काम या ऐसी ही किसी एक कसौटी पर परख कर संपूर्ण रूप से खरा या खोटा कह सकें।
कपटी-से-कपटी लुटेरा भी अपने साथियों के साथ कितना सच्चा है, उसे देखकर महान सत्यवादी भी लज्जित हो सकता है। कठोर-से-कठोर अत्याचारी भी अपनी संतान के प्रति इतना कोमल है कि कोई भी भावुक उसकी तुलना में नहीं ठहरेगा.
बार-बार नदी में डुबकी लगाने वाला मकोड़ा भी हर बार पत्ते पर शरण लेने के लिए संघर्ष करता रहता है, वह अपनी आशा को सफलता पाने या मृत्यु तक नहीं तजता।”
सच पूछिए तो आशा और आत्मविश्वास ही वे वस्तुएं हैं, जो हमारी आत्मिक शक्तियों को जगाती हैं और सृजनात्मक शक्ति को बढ़ाती हैं। आशा के अभाव में सारा संसार ही निराशामय दिखायी पड़ता है।
दोस्तों, उम्मीद है आपको ये Short Motivational Stories in Hindi पसंद आई होंगी और आप इनसे कुछ सीख लेंगे. हम आपकी सफलता की कामना करते हैं. पढ़ने के लिए धन्यवाद.
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