चाणक्य नीतियाँ (Chanakya Niti in Hindi) और रणनीतियाँ एक बेहतर जीवन के लिए:
चाणक्य नीतियाँ प्राचीन भारत के महान रणनीतिकार, विद्वान, शिक्षक, सलाहकार और अर्थशास्त्री चाणक्य द्वारा लिखी गई थी। मौर्य राजवंश की सफलता के पीछे वे मास्टरमाइंड थे। चाणक्य ने अपना जीवन मौर्य साम्राज्य को बनाने और उसके अग्रणी-चंद्रगुप्त मौर्य और उनके बेटे बिन्दुसार के लिए समर्पित किया। वे अपने शासनकाल के दौरान शाही सलाहकार, अर्थशास्त्री और दार्शनिक थे।
यह काफी हद तक चाणक्य की सबसे बड़ी कृतियों में से एक के रूप में माना जाता है और कई महान शासकों, नेताओं और प्रसिद्ध हस्तियों द्वारा इनका पालन किया जाता है।
चाणक्य नीति नामक पुस्तक से, हमने ध्यान से महान चाणक्य विचार, चाणक्य कहावतें और चाणक्य उद्धरण का चयन किया है जो हमारे जीवन पर भारी प्रभाव डाल सकते हैं।
जिसने भी चाणक्य नीति को पढ़ा है और उस पर अमल किया है, उसने जीवन में बड़े पैमाने पर सफलता प्राप्त की है, इसलिए आपको इसे पूरा पढ़ने और लागू करने की कोशिश करनी चाहिए।
Chanakya Niti in Hindi | चाणक्य नीति (1-10)
मनुष्य शास्त्र को सुनकर धर्म को जानता है, शास्त्र सुनकर दुर्बुद्धि को छोड़ता है, शास्त्र सुनकर ज्ञान पाता है नथा ज्ञान प्राप्त करके मोक्ष की प्राप्ति होती है।
पक्षियों में कौआ, पशुओं में कुत्ता, मुनियों में पाप और परनिन्दक सबमें चाण्डाल होता है।
कांसे का पात्र राख से, तांबे का पात्र इमली या खटाई से, स्त्री रजस्वला होने पर और नदी धारा के वेग से शुद्ध हो जाती है।
भ्रमण करनेवाला राजा आदर पाता है, घूमनेवाला ब्राह्मण पूजा जाता है, भ्रमण करनेवाला योगी पराजित होता है; परन्तु स्त्री घूमने से भ्रष्ट हो जाती है।
जिसके पास धन रहता है उसके मित्र तथा जिसके पास संपत्ति रहती है उसके बान्धव चहेते होते हैं, जिसके पास धन रहता है वही पुरुष एवं पण्डित कहलाता है।
यौवन, धन सम्पदा, प्रभुता और अविवेक – ये एक एक भी अनर्थ के कारण हैं. और जहां चारों एकत्र हो जाएँ, वहाँ तो कहना ही क्या?
काल जीवों को जीर्ण एवं नष्ट करता है, और सबके सोने पर भी जागता रहता है। उसका उल्लंघन करनेवाला कोई नहीं है।
नेत्र न होने के कारण जन्मान्ध, नेत्रों के होते हुए भी कामान्ध और मदोन्मत्त नहीं देखते, अर्थात् उनको कुछ नहीं सूझता। जिसका काम अटका होता है, वह गरजी किसी काम में दोष नहीं देखता।
जीव आप ही काम करता है और उसका फल भी आप ही भोगता है, आप ही संसार में भ्रमता है और आप ही उससे मुक्त भी होता है।
अपने राज्य में किये हुए पाप को राजा और राजा के पाप को पुरोहित भोगता है। जैसे स्त्रीकृत पाप को पति भोगता है वैसे ही शिष्य के पाप को गुरु भोगता है।
Chanakya Niti Quotes (11-20)
ऋण करने वाला पिता, व्यभिचारिणी माता, सुन्दरी स्त्री और मूर्ख पुत्र शत्रु है।
लोभी को धन से, हठी को हाथ जोड़ने से, मूर्ख को उसकी इच्छा पूरी कर और बुद्धिमान को सच्चाई से वश में करना चाहिए।
राज्य न रहना अच्छा; परन्तु कुराजा का राज्य होना अच्छा नहीं । मित्र का न होना अच्छा ; पर कुमित्र को मित्र बनाना अच्छा नहीं । शिष्य न हो यह अच्छा; पर निन्दित शिष्य शिष्य कहलावे, यह अच्छा नहीं। भार्या न रहे, यह अच्छा; पर कुभार्या का होना अच्छा नहीं।
दुष्ट राजा के राज्य में प्रजा को सुख कैसे हो सकता है ? और कुमित्र से आनंद कैसे मिल सकता है ? दुष्ट स्त्री से गृह में प्रीति कैसे होगी? और कुशिष्य को पढ़ानेवाले की कीर्ति कैसे होगी?
सिंह से एक, बगुले से एक और कुक्कुट से चार बातें सीखनी चाहिए। कौए से पांच, कुत्ते से छह और गधे से तीन गुण सीखना उचित है।
बीस गुण:
- कार्य छोटा हो या बड़ा, जो करना चाहे, उसको सब दो प्रकार के प्रयत्न से करना उचित है, इसे सिंह से एक गुण सीखना कहते हैं।
- विद्वान् पुरुष को चाहिए कि इन्द्रियों का संयम करके देश, काल और बल को समझकर बगले के समान सब कार्यों को साधे।
- उचित समय में जागना, रण में उद्यत रहना, बन्धुओं को उनका भाग देना और आप आक्रमण करके भोजन करना, इन चार बातों को कुक्कुट (मुर्गे) से सीखना चाहिए।
- सदा सुरक्षित रहना, साथ जोड़ा रखना, समय-समय पर संग्रह करना, सावधान रहना और किसी पर विश्वास न करना, इन पाँचों को कौवे से सीखना उचित है।
- बहुत खाने की शक्ति रहते भी थोड़े ही से संतुष्ट होना, गाढ निद्रा रहते भी झटपट जागना, स्वामी की भक्ति और शूरता इन छः गुणों को कुत्ते से सीखना चाहिए।
- अत्यन्त थक जाने पर भी बोझे को ढोते जाना, शीत और गर्मी पर दृष्टि न देना, सदा संतुष्ट होकर विचरना, इन तीन बातों को गधे से सीखना चाहिए।
- जो नर इन बीस गुणों को धारण करेगा, वह सदा सब अवस्थाओं और सब कार्यो में विजयी होगा।
धन का नाश, मन का ताप, गृहिणी का चरित, नीच वचन और अपमान, इनको बुद्धिमान पुरुष न प्रकाशित करें।
अन्न और धन के व्यापार में, विद्या का संग्रह करने में, आहार और व्यवहार में जो पुरुष लज्जा को दूर रक्खेगा, वही सुखी होगा।
सन्तोषरूपी अमृत से जो लोग तृप्त हैं, उनको जो शांति और सुख होता है, वह धन के लोभियों को, जो इधर-उधर दौड़ा करते हैं, नहीं होता।
अपनी स्त्री, भोजन और धन, इन तीनों में संतोष करना चाहिए। पढ़ना, जप और दान, इन तीन में संतोष कभी न करना चाहिए।
दो ब्राह्मण, ब्राह्मण और अग्नि, स्त्री-पुरुष, स्वामी और भृत्य, हल और बैल, इनके बीच से होकर नहीं जाना चाहिए।
Chanakya Niti Status | चाणक्य नीति (21-30)
अग्नि, गुरु, ब्राह्मण, गऊ, कुमारी, वृद्ध और बालक को पैर से न छूना चाहिए।
गाड़ी को पांच हाथ पर, घोड़े को दस हाथ पर हाथी को हजार हाथ पर और दुर्जन को देश-त्याग करके छोड़ना चाहिए।
हाथी केवल अंकुश से और घोड़ा हाथ से मारा जाता है। सींगोंवाले जन्तु लाठी से और दुर्जन तलवार से दण्डनीय हैं।
भोजन के समय ब्राह्मण और मेघ के गर्जने पर मयूर, दूसरे को संपत्ति प्राप्त होने पर साधु और दूसरे पर विपत्ति आने से दुर्जन संतुष्ट होते हैं।
बली शत्रु को उसको अनुकूल व्यवहार करें और यदि वह दुर्जन हो तो उसे प्रतिकूलता से वश करे। अपने समान बली शत्रु को विनय से अथवा बल से जीते।
राजा का बाहुवीर्य बल है, ब्राह्मण ब्रह्मज्ञानी व वेदपाठी बली होता है। सुन्दरता, जवानी और मधुरता स्त्रियों का अति उत्तम बल है।
अत्यन्त सीधे स्वभाव से नहीं रहना चाहिए। वन में जाकर देखो, सीधे वृक्ष काटे जाते हैं और टेढ़े खड़े रहते हैं।
जहाँ जल रहता है वहीं हंस बसते हैं, और सूखे सर को छोड़ देते हैं। नर को हंस के समान नहीं रहना चाहिए। वे बार-बार छोड़ देते हैं और बार-बार आश्रय लेते हैं।
अर्जित धन का व्यय करना ही उसकी रक्षा है जैसे तड़ाग के भीतर के जल को निकाल देने ही से उसकी रक्षा होती है।
जिसके धन है, उसी के मित्र होते हैं, उसी के बन्धु होते है, वही पुरुष गिना जाता है, वही जीता है।
Chanakya Niti Motivation (31-40)
अत्यन्त क्रोध, कटु वचन, दरिद्रता, अपने जनों से वैर, नीच का संग, कुलहीन की सेवा, ये चिह्न नरकवासियों की देहों में रहते हैं।
संसार में आने पर स्वर्ग से आनेवालों के ये चार चिह्न रहते हैं-दान का स्वभाव, मीठे वचन, देवता की पूजा, ब्राह्मण को तृप्त करना । अर्थात् जिन लोगों में दान आदि लक्षण रहें, उनको जानना चाहिए कि अपने पुण्य के प्रभाव से उन स्वर्गवासियों ने मृत्युलोक में अवतार लिया है।
यदि कोई सिंह की गुहा में जा पड़े तो उसको हाथी के मस्तक का मोती मिलता है और सियार के स्थान में जाने पर बछड़े की पूंछ और गधे के चमड़े का टुकड़ा मिलता है।
कुत्ते की पूँछ के समान विद्या विना जीना व्यर्थ है। जैसे कुत्ते की पूँछ गुप्त इन्द्रिय को ढाँप नहीं सकती, न मच्छड़ आदि जीवों को उड़ा सकती है, वैसे ही मूर्ख पुरुष न छिपाने की बात को छिपा सकता है और न शत्रु के आक्रमण को व्यर्थ कर सकता है।
वचन की शुद्धि, मन की शुद्धि, इन्द्रियों का संयम, जीवों पर दया और पवित्रता, यही पराथियों (परमार्थ या मुक्ति चाहनेवालों) की शुद्धि है।
जैसे फूल में गन्ध, तिल में तेल, काठ में आग, दूध में घी, ईंख में गुड़, वैसे ही देह में स्थित आत्मा को इस विचार से देखो।
अधम धन ही चाहते है, मध्यम धन और मान; पर उत्तम जन मान ही चाहते हैं। कारण, महात्माओं का धन मान ही है।
ऊख, जल, दूध, मूल, पान, फल और दवा, इन वस्तुओं के खाने-पीने पर भी स्नान-दानादि क्रियाएं करनी चाहिए।
दीपक अन्धकार को खा जाता है और काजल को पैदा करता है । सत्य है, जो जैसा अन्न सदा खाता है, उसके वैसी ही सन्तति होती है।
हे मतिमन् ! गुणियों को धन दो, औरों को कभी मत दो। देखो, जल समुद्र से मेघ के मुख में प्राप्त होकर सदा मधुर हो जाता है, और पृथ्वी पर चर, अचर सब जीवों को जिलाकर फिर वही जल कोटिगुना होकर उसी समुद्र में चला जाता है।
Chanakya Niti Quotation (41-50)
तत्त्वदर्शियों ने कहा है कि सहस्र चाण्डालों के तुल्य एक यवन होता है। यवन से नीच दूसरा कोई नहीं।
तेल लगाने पर, चिता का धूम लगने पर, स्त्री प्रसंग करने पर, बाल बनवाने पर मनुष्य जब तक स्नान नहीं करता, तब तक चाण्डाल ही बना रहता है।
जल अपच होने पर औषधि है, पच जाने पर बल को देता है, भोजन के समय अमृत के समान है और भोजन के अन्त में विष का फल देता है।
आचरण के बिना ज्ञान व्यर्थ है। अज्ञान से नर मारा जाता है। सेनापति के बिना सेना मारी जाती है। स्वामी-हीन स्त्री नष्ट हो जाती है।
बुढ़ापे में मरी स्त्री, बन्धु के हाथ में गया धन, दूसरे के अधीन भोजन, ये तीन बातें पुरुषों की विडम्बना हैं, अर्थात् दुःखदायक होती हैं।
अग्निहोत्र के विना वेद का पढ़ना व्यर्थ होता है, दान के विना यज्ञादि क्रिया नहीं बनती। भाव के विना कोई सिद्धि नहीं होती। इसलिए भाव ही सबका कारण है।
देवता न तो काठ में हैं, न पापा में हैं, न मृत्तिका की मूर्ति में हैं। निश्चय ही देवता भाव में विद्यमान हैं। इस हेतू भाव ही सबका कारण है।
गुण रूप को भूषित करता है, काल कुल को अलंकृत करता है, सिद्धि विद्या को भूषित करती है और भोग धन को भूषित करता है।
गुण-हीन की सुन्दरता व्यर्थ है, शील-हीन का कुल निंदित होता है, सिद्धि के बिना विद्या व्यर्थ है, भोग के बिना धन व्यर्थ है।
भूमिगत जल पवित्र होता है, पतिव्रता स्त्री पवित्र होती है, कल्याण करने वाला राजा पवित्र गिना जाता है और ब्राह्मण संतोषी शुद्ध होता है।
Chanakya Neeti in Hindi (51-60)
असंतोषी ब्राह्मण, संतोषी राजा, लज्जासहित वेश्या और लज्जा-हीन कुलीन स्त्री नष्ट हो जाती है।
विद्याहीन बड़े कुल से मनुष्यों को क्या लाभ है ? विद्वान का नीच कुल भी देवताओं से पूजा पाता है।
संसार में विद्वान् ही प्रशंसित होता है, विद्वान् ही सब स्थान में आदर पाता है, विद्या ही से सब कुछ मिलता है, विद्या ही सब स्थानों में पूजित होती है।
बिना गंध के टेसू के फूल की भाँति सुन्दरता और जवानी से युक्त और बड़े कुल में उत्पन्न होकर भी विद्याहीन मनुष्य नहीं सोहते।
मांस-भक्षण और मदिरा-पान करनेवाले, निरक्षर और मूर्ख पुरुषाकार पशुओं के भार से पृथ्वी पीड़ित रहती है।
यज्ञ यदि अन्नहीन हो तो राज्य को, मन्त्रहीन हो तो ऋत्विजों को और दानहीन हो तो यजमान को जलाता है। इस कारण यज्ञ के समान कोई शत्रु नहीं है।
हे भाई! यदि मुक्ति चाहते हो तो विषयों को विष के समान छोड़ दो और सहनशीलता, सरलता, दया, पवित्रता और सचाई को अमृत की नाई पियो।
जो नराधम परस्पर अन्तरात्मा को दुःखदायक वचनों का भाषण करते हैं, निश्चय ही वे नष्ट हो जाते हैं जैसे बाँबी में फंसकर साँप।
सुवर्ण में गन्ध, ऊँख में फल, चन्दन में फूल, विद्वान को धनी और राजा को चिरंजीवी नहीं किया। इससे निश्चित है कि विधाता को पहले कोई बुद्धि देनेवाला न था।
सब ओषधियों में गुर्च, सब सुखों में भोजन, सब इन्द्रियों में आँख और सब अंगों में शिर श्रेष्ठ है।
चाणक्य नीति हिंदी में (61-70)
आकाश में न तो दूत जा सकता है, न वार्ता की चर्चा ही चल सकती है, न पहले से ही किसी ने कह रक्खा है, न किसी से संगम हो सकता है, ऐसी दशा में द्विजवर आकाश में स्थित सूर्य-चन्द्रमा के ग्रहण को स्पष्ट जानता है, वह कैसे विद्वान नहीं है ।
विद्यार्थी, सेवक, पथिक, भूख से पीड़ित, भय से कातर, भंडारी और द्वारपाल, ये सात यदि सोते भी हों तो जगा देना चाहिए।
सांप, राजा, व्याघ्र, बरैया, बालक, दूसरे का कुत्ता और मूर्ख, ये सात सोते हों, तो इन्हें नहीं जगाना चाहिए।
जिन ब्राह्मणों ने धन के लिए वेद को पढ़ा है और शूद्रों का अन्न भोजन करते हैं, वे विषहीन सर्प के समान क्या कर सकते हैं।
जिसके क्रुद्ध होने पर न भय है, न प्रसन्न होने पर धन का लाभ, जो न दण्ड दे सकता है, न अनुग्रह कर सकता है, वह रुष्ट होकर क्या करेगा।
विषहीन सांप को भी अपना फन निकालना चाहिए। इस कारण कि विष हो या न हो, पर आडम्बर भयजनक होता है।
प्रातःकाल में जुआरियों की कथा से अर्थात् महाभारत से, मध्याह्न में स्त्री प्रसंग से अर्थात् रामायण से, रात्रि में चोर की वार्ता से अर्थात् भागवत की वार्ता से बुद्धिमानों का समय बीतता है।
व्याख्या:
तात्पर्य यह कि महाभारत के सुनने से यह निश्चित हो जाता है कि जुआ कलह और छल का घर है, इस लोक और परलोक में उपकार करनेवाले कामों को, महाभारत में लिखी हुई रीतियों से करने पर उन कामों का पूरा फल होता है । इस कारण बुद्धिमान लोग प्रातःकाल ही महाभारत को सुनते हैं, जिसमें दिन भर उसी रीति से काम करते जायँ ।
रामायण सुनने से स्पष्ट उदाहरण मिलता है कि स्त्री के बस होने से अत्यन्त दुःख होता है, और परस्त्री पर दृष्टि देने से पुत्र, कलत्र तथा जड़मूल के साथ पुरुष का नाश हो जाता है। इस हेतु मध्याह्न में अच्छे लोग रामायण को सुनते हैं ।
प्रायः: रात्रि में लोग इन्द्रियों के वश हो जाते हैं, और इन्द्रियों का यह स्वभाव है कि मन को अपने-अपने विषयों में लगाकर जीव को विषयों में लगा देती हैं। इसी कारण इन्द्रियों को आत्मा पहारी भी कहते हैं। जो लोग रात को भागवत सुनते हैं, वे कृष्ण के चरित्र को स्मरण करके इन्द्रियों के वश नहीं होते; क्योंकि सोलह हजार से अधिक स्त्रियों के रहते भी श्रीकृष्णचन्द्र इन्द्रियों के वश न हुए, जिससे लोगों को इन्द्रियों के संयम की रीति का ज्ञान होता है।
अपने हाथ से गुथी माला, अपने हाथ से घिसा चन्दन, अपने हाथ से लिखा स्तोत्र, ये इन्द्र की भी लक्ष्मी को हर लेते हैं।
ऊख, तिल, शूद्र, कान्ता, सोना, पृथ्वी, चन्दन, दही, पान ये ऐसे पदार्थ हैं कि इनका मर्दन गुणवर्धक होता है।
धीरता से दरिद्रता भी शोभती है, स्वच्छता से कुवस्त्र भी सुन्दर जान पड़ता है, उष्णता से खराब अन्न भी मीठा लगता है, सुशीलता से कुरूपता भी शोभती है।
दोस्तों, उम्मीद है आपको ये सभी Chanakya Niti in Hindi पसंद आये होंगे. अपने दोस्तों के साथ शेयर करना ना भूलें.
हालांकि कुछ त्रुटियां हो सकती हैं, हमारा इरादा चाणक्य नीति से सर्वश्रेष्ठ विचारों और जीवन के सबक साझा करना है और इसमें कुछ विवादित विचार शामिल हो सकते हैं। चाणक्य नीति चाणक्य के प्रसिद्ध कार्यों में से एक है और कई महान नेताओं द्वारा इसकी प्रशंसा और अनुसरण किया जाता है। मुझे आशा है कि आप इससे सीखेंगे और बेहतर, सफल और जीवन को पूरा करेंगे।